इंदौर। इंदौर के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब इंदौर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस विहीन चुनाव होंगे। इससे पहले अब तक हुए सभी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। भले ही वर्ष 1989 के बाद से यह सीट भाजपा के कब्जे में रही हो लेकिन ऐसा कोई भी चुनाव नहीं रहा जब कांग्रेस ने यहां के परिणामों को प्रभावित नहीं किया हो। वर्ष 1952 में हुए पहले आम चुनाव से ही इंदौर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। पार्टी ने अब तक यहां से आधा दर्जन बार जीत हासिल की है।
इंदौर लोकसभा क्षेत्र ने राष्ट्रीय स्तर के नेता भी देश को दिए हैं। इनमें केंद्रीय गृह मंत्री रहे प्रकाशचंद्र सेठी भी शामिल हैं तो लोकसभा अध्यक्ष रहीं भाजपा की सुमित्रा महाजन भी। प्रकाशचंद्र सेठी ने कांग्रेस के झंडे तले चार बार यहां से जीत दर्ज की तो सुमित्रा महाजन ने आठ बार भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस को पराजित किया। उन्होंने ही वर्ष 1989 में इंदौर में भाजपा की जीत का सिलसिला शुरू किया था।
इंदौर लोकसभा सीट पर मतों का विभाजन सामान्यत: दो दलों के बीच ही होता रहा है। तीसरी ताकत के रूप में दो बार जरूर यहां से प्रत्याशी लोकसभा पहुंचे लेकिन इसके अलावा कभी कोई प्रत्याशी उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं कर सका है। इंदौर में निर्दलीय प्रत्याशियों को मिलने वाले मतों का प्रतिशत सामान्यत: कुल मतदान का दो से तीन प्रतिशत के बीच ही रहा है। ऐसी स्थिति में इस बार के चुनाव में भी बहुत ज्यादा बदलाव की स्थिति नजर नहीं आ रही। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि कांग्रेस पहले कह चुकी है कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के नामांकन वापस लेने के बाद वह किसी अन्य निर्दलीय प्रत्याशी को अपना समर्थन नहीं देगी।
