मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई “एक बगिया मां के नाम परियोजना”, “गंगोत्री हरित योजना” और “नर्मदा परिक्रमा पथ” जैसी योजनाओं को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने की दिशा में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने व्यापक तैयारियां शुरू कर दी हैं। इन योजनाओं के तहत मनरेगा के माध्यम से प्रदेश में बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
इन कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रदेश के 2101 इंजीनियर और 626 कृषि सखी को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह प्रशिक्षण मध्यप्रदेश जल-भूमि प्रबंध संस्थान, भोपाल और क्षेत्रीय ग्रामीण विकास-पंचायतराज प्रशिक्षण केंद्रों में संचालित किया जा रहा है। प्रशिक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पौधरोपण कार्य वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीके से किया जाए।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री प्रहलाद पटेल ने निर्देश दिए हैं कि नदियों के उद्गम स्थलों पर पौधरोपण को प्राथमिकता दी जाए। साथ ही मां नर्मदा परिक्रमा पथ पर आश्रय स्थलों में पौधरोपण कर तीर्थ यात्रियों को बेहतर सुविधाएं दी जाएं। उन्होंने “एक बगिया मां के नाम परियोजना” को महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का एक सशक्त माध्यम बताया।
मनरेगा के अंतर्गत प्रशिक्षण पाने वाले अधिकारियों में 36 कार्यपालन यंत्री आरईएस, 215 सहायक यंत्री, 47 डीपीएम एसआरएलएम और 1803 उप यंत्री शामिल हैं। इन्हें पौधरोपण की तकनीकी बारीकियों से अवगत कराया जा रहा है, जिससे वे इस कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न कर सकें।
प्रदेश में पहली बार पौधरोपण कार्य में अत्याधुनिक तकनीक सिपरी सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। इस सॉफ्टवेयर की मदद से संबंधित जिलों की जलवायु, मिट्टी की गुणवत्ता, एग्रो क्लाइमेट ज़ोन, स्थल चयन और पानी की उपलब्धता जैसी जानकारियां जुटाकर पौधों की उपयुक्त प्रजातियों का चयन किया जाएगा। जहां सॉफ्टवेयर उपयुक्तता नहीं दिखाता, वहां पौधरोपण नहीं किया जाएगा, जिससे संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो सके।
“एक बगिया मां के नाम” अभियान के तहत स्व-सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए उनकी निजी भूमि पर फलदार पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए 626 कृषि सखी को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये कृषि सखी बाद में अन्य स्व-सहायता समूहों की महिलाओं को पौधारोपण की तकनीक, पौधों के चयन और देखरेख के बारे में प्रशिक्षण देंगी और उन्हें आवश्यक सहयोग प्रदान करेंगी। इस व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश में न केवल पर्यावरण-संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्राप्त होगा।