रेंज आफिसर खंडवा विजय चौहान ने बताया कि तीन दिन से गणना की जा रही है। खंडवा रेंज की 14 बीटों में हमने गिद्दों की तलाश की। लेकिन पूरे जिले में एक भी गिद्ध नहीं दिखाई दिया। उन्होंने बताया पिछले चार सालों से जिले में गिद्ध नहीं देखे गए। हमने शहर में नगर निगम के ट्रेंचिंग ग्राउंड के आसपास भी गिद्धों की तलाश की लेकिन नजर नहीं आए।
तेजी से विलुप्त हो रहे गिद्धों को लेकर तीन साल बाद फिर वन विभाग ने प्रदेशभर में एक साथ गिद्धों की गिनती का काम शुरू किया है। 17 फरवरी से 33 जिलों में आने वाले 900 से अधिक वन क्षेत्रों में वनकर्मियों से गिनती करवाई गई है। इसमें खंडवा रेंज की बीटों में भी गिद्दों की तलाश की गई।
रेंज आफिसर खंडवा विजय चौहान ने बताया कि तीन दिन से गणना की जा रही है। खंडवा रेंज की 14 बीटों में हमने गिद्दों की तलाश की। लेकिन पूरे जिले में एक भी गिद्ध नहीं दिखाई दिया। उन्होंने बताया पिछले चार सालों से जिले में गिद्ध नहीं देखे गए। हमने शहर में नगर निगम के ट्रेंचिंग ग्राउंड के आसपास भी गिद्धों की तलाश की लेकिन नजर नहीं आए।
इसी तरह सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने.अपने क्षेत्रों में गिद्द ढूंढने का काम दिया गया। सभी संभावित क्षेत्रों में गिद्दों की तलाश की गई। कुल 19 अधिकारी, कर्मचारियों की ड्यूटी विभिन्न स्थानों पर लगाई गई थी। इस काम में एनजीओ की मदद भी ली गई है।
अधिकारियों के मुताबिक जमीन और पेड़ों पर बैठे गिद्धों को गिनती में शामिल किया जाता है। इस बार तीन दिन लगातार गिद्धों को लेकर सर्वे किया गया। वैसे गिद्धों की तस्वीर और जानकारी एप्लीकेशन के माध्यम से देना है।ऐसे होती है गणनागिद्धों का क्षेत्र निर्धारित रहता है। टीम के सदस्य पेड़ और जमीन पर बैठे गिद्धों को गिनते हैं।
यह सर्वे सुबह किया जाता है, क्योंकि इस समय गिद्ध भोजन की तलाश में घोंसलों से निकलकर बाहर आते हैं। ये अन्य पक्षियों की तरह बार.बार उड़ान नहीं भरते हैं,बल्कि एक स्थान पर आने के बाद 20.30 मिनट तक बैठे रहते हैं। आमतौर पर गिद्ध समूह में रहते हैं।
वन्यप्राणी विशेषज्ञ अभय जैन का कहना है कि सुबह छह से आठ बजे तक गिद्ध कम उड़ान भरते हैं। उस दौरान गिनती आसानी से कर सकते हैं। वे कहते हैं कि रिपीट काउंटिंग होने की गुंजाइश बहुत कम रहती हैए क्योंकि वे एक स्थान पर देर तक बैठे रहते हैं।
गिद्धो के नहीं मिलने का यह भी एक कारणदेशभर में खेतों में रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का अंधाधून उपयोग किया जा रहा है। पशुओं को दूध बढ़ाने के लिए लगाए जाने वाले प्रतिबंधित इंजेक्शन और दर्दनाशक दवाईयां जो पशुओं को दी जाती है।
ऐसे में इन पशुओं की मौत होने पर इनके शवों को खुले में ही फेंक दिया जाता है। इन शवों का गिद्ध आहार के रूप में उपयोग करते हैं। इसके अलावा पहले शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के श्वानों की संख्या नियंत्रित करने के लिए उन्हें जहर देकर मारा जाता था और शवों को बाहरी क्षेत्रों में फेंकते थे। इन कारणों से तेजी से गिद्धों की मौत होने से वे विलुप्त हो चुके है।