इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी अकेले ही प्रदेशभर में दौड़ते रहे।
पांच माह पहले जब जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी, तब माना जा रहा था कि यह कांटोभरा ताज उनके सिर पर है। अब लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 29 में से एक भी सीट हासिल न कर पाने के कारण कांग्रेसियों ने ही उनकी चौरतरफा घेराबंदी शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव के बाद जिम्मेदारी मिलते ही अपने नेताओं को भाजपा में जाने से रोकने में विफल रहने के आरोप लगे।
उसके बाद लोकसभा चुनाव में अपने ही घर यानी इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी को भाजपाई उड़ा ले गए और उन्हें भनक तक नहीं लगी। मालवा-निमाड़ में सभी सीटें हारने के बाद इंदौर, देवास और धार सहित अन्य जगहों से विरोध के स्वर बुलंद होने लगे हैं। कांग्रेस नेता अजय सिंह द्वारा उठाए गए सवालों के बाद अब पटवारी की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कई कांग्रेसी खुद ही यह स्वीकारते हैं कि पटवारी आज भी युवक कांग्रेस अध्यक्ष की कार्यशैली से बाहर नहीं आ पाए हैं।पटवारी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया। यही वजह है कि मनमाफिक परिणाम नहीं आने के बाद अब वरिष्ठ व पुराने नेता ही उनके खिलाफ मुखर हो रहे हैं। पटवारी ने प्रत्याशी तय करने व चुनावी रणनीति बनाने के लिए वरिष्ठ नेताओं से कभी मार्गदर्शन ही नहीं लिया।
जबकि भाजपा की खामियों व आगामी रणनीतियों पर वरिष्ठ नेताओं का अनुभव काम आ सकता था। पटवारी का इन नेताओं के साथ मेलजोल भी कम रहा है। कांग्रेसी दबी जुबां में कह रहे हैं कि पटवारी ने पार्टी में सीनियर व जूनियर का भेद खत्म कर दिया था। वरिष्ठों का न तो सम्मान होता था और न ही निर्णय उनसे पूछकर लिए जाते थे।