सीतापुर। साल 1952 से अभी तक देश में 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन सीतापुर लोकसभा सीट के साथ एक अजीब संयोग जुड़ा है। बीते 72 वर्षों में करीब 10 नेताओं को सीतापुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और इन सभी के साथ एक संयोग यह रहा कि सभी नेताओं के नाम में ‘र’ जरूर शामिल था।
राजनीतिक जानकार की मानें तो सीतापुर लोकसभा सीट के लिए ‘र’ अक्षर राजयोग लेकर आता है। इस संसदीय सीट से अभी तक जिनके लोग भी सांसद चुने गए हैं, उनके नाम में ‘र’ अक्षर शामिल रहा है। सबसे खास बात ये है कि जिन लोगों के नाम की शुरुआत ही ‘र’ से हुई, उन्हें इस सीट पर काफी ज्यादा मजबूती मिली।
सीतापुर में ‘र’ से नाम की शुरुआत वाले नेताओं का प्रभाव उनके राजनीतिक करियर पर भी दिखा। राजेंद्र कुमारी बाजपेयी और राजेश वर्मा ऐसे सांसद हैं, जिनके नाम की शुरुआत ‘र’ से हुई है। राजेंद्र कुमारी यहां 3 बार सांसद रही, वहीं राजेश 4 बार क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके हैं। कांग्रेस से राजेंद्र कुमारी बाजपेयी ने 1980, 84 व 89 में चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाई।
वहीं दूसरी ओर राजेश वर्मा को यहां सबसे अधिक 4 बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। राजेश वर्मा बसपा से 1999 व 2004 और भाजपा से 2014 व 2019 में सांसद रह चुके हैं। इस सीट के बीते 25 साल के सियासी इतिहास को देखा जाए तो मुख्तार अनीस को सबसे कम और नकुल दुबे को सबसे अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
वैदिक ज्योतिषाचार्य अपराजिता अपूर्व का मानना है कि सीतापुर से अभी तक चुने गए सभी सांसदों के नाम में ‘र’ अक्षर पराक्रम भाव में हैं। उनका कहना है कि जिन लोगों के नाम में भी पहला अक्षर ‘र’ है और ‘आ’ की मात्रा साथ में है, उनका राजनीतिक करियर अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावी रहता है।
सीतापुर लोकसभा सीट में सिर्फ जीतने वाले ही नहीं, बल्कि हारने वाले प्रत्याशियों को भी ‘र’ अक्षर की ताकत मिली है। ‘र’ अक्षर वाले उम्मीदवार का अन्य प्रत्याशियों की तुलना में जीत का अंतर काफी कम रहा। साल 1999 में बसपा के राजेश वर्मा से भाजपा के जनार्दन मिश्र को सिर्फ 36362 मतों से हार का सामना करना पड़ा।
वहीं दूसरी ओर साल 2004 में राजेश मिश्रा से मुकाबला समाजवादी पार्टी के मुख्तार अनीस का था, जिन्हें सिर्फ 5234 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 2009 में बसपा की कैसर जहां से समाजवादी पार्टी के महेंद्र सिंह वर्मा 19632 मतों से हारे। 2014 में भाजपा के राजेश वर्मा ने बसपा की कैसर जहां को 51027 से पराजित किया। वहीं साल 2019 में बसपा के ही नकुल दुबे को 100833 मतों से हार का सामना करना किया। साल 1999 से लेकर अब तक सबसे अधिक मतों के अंतर से नकुल दुबे की हार हुई है, जिनके नाम में ‘र’ अक्षर नहीं है।
